
तेरे मेरे दरमयां कुछ बातें , अधूरी पड़ी है
जरा समय निकाल कर आ
थोड़े मेरे "लफ्ज" ले जा ,थोड़े अपने "गम" दे जा ||
बामुश्किल खुशियाँ जोड़ी है, तेरे इंतजार में
जरा समय निकाल कर आ
मुझे आंसू दे जा , अपनी खुशियाँ ले जा ||
कुछ त्यौहार अधूरे पड़े है , तेरे इंतजार में
जरा समय निकाल कर आ
अपने पीने की वजह ले जा , मुझे जीने की वजह दे जा ||
उन गलियों में , हमारे कुछ पुराने किस्से रखें है
कुछ इल्जाम तो ले लिए मैंने अपने सर
बाकी कुछ तेरे हिस्से रखें है |
जरा समय निकाल कर आ
अपना इनाम ले जा, मुझे और इल्जाम दे जा ||
पिछली बात का जख्म , अब भी हरा है
आँखों में, आसुंओं का ,समन्दर भरा है
उन जख्मों को कुरेदने के बहाने आ
अपन हक ले जा , मुझे और जख्म दे जा |
तेरे मेरे दरमयां कुछ बातें , अधूरी पड़ी है
जरा समय निकाल कर आ
5 comments:
बहुत ही सुन्दर रचना....बधाई स्वीकार करें विजय जी.
उन गलियों में , हमारे कुछ पुराने किस्से रखें है
कुछ इल्जाम तो ले लिए मैंने अपने सर
बाकी कुछ तेरे हिस्से रखें है |
वाह...वाह...बहुत कमाल की रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
पिछली बात का जख्म , अब भी हरा है
आँखों में, आसुंओं का ,समन्दर भरा है
उन जख्मों को कुरेदने के बहाने आ
अपन हक ले जा , मुझे और जख्म दे जा |
दिल हो दुखाने के लिए आ हमें तो यह याद आया गया , अच्छे शेर दाद कुबूल करें .....
तेरे मेरे दरमयां कुछ बातें , अधूरी पड़ी है
जरा समय निकाल कर आ
थोड़े मेरे "लफ्ज" ले जा ,थोड़े अपने "गम" दे जा ||bhaut hi khubsurat......
amazing writing
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