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Thursday, October 20, 2011

माँ मज़बूरी


माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

फिजूल में रबड़ता , दोस्तों के साथ इधर-उधर
बगल के कमरे में, माँ से मिलना , मीलों की दुरी लगता है ||
वो घंटों लगा रहता है, फेसबुक पे अजनबियों से बतियाने में
अब माँ का हाल जानना, उसे चोरी लगता है ||

खून की कमी से रोज मरती, बेबस लाचार माँ
वो दोस्तों के लिए, शराब की बोतल, पूरी रखता है ||
वो बड़ी कार में घूमता है , लोग उसे रहीस कहते है
पर बड़े मकान में , माँ के लिए जगह थोड़ी रखता है ||

माँ के चरण देखे , एक अरसा बीता उसका ...
अब उसे बीवी का दर, श्रद्धा सबुरी लगता है ||
माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

5 comments:

Aparajita said...

:( :(
Nice

विभूति" said...

फिजूल में रबड़ता , दोस्तों के साथ इधर-उधर
बगल के कमरे में, माँ से मिलना , मीलों की दुरी लगता है ||
वो घंटों लगा रहता है, फेसबुक पे अजनबियों से बतियाने में
अब माँ का हाल जानना, उसे चोरी लगता है ||वर्तमान की परिस्तिथि की सार्थक अभिवयक्ति.....

vandana gupta said...

माँ के चरण देखे , एक अरसा बीता उसका ...
अब उसे बीवी का दर, श्रद्धा सबुरी लगता है ||
माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

एक सच का सटीक चित्रण्।

Kailash Sharma said...

माँ के चरण देखे , एक अरसा बीता उसका ...
अब उसे बीवी का दर, श्रद्धा सबुरी लगता है ||
माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

....आज काल के हालात का बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी चित्रण...

मन्टू कुमार said...

अतिसुंदर कटाक्ष..... शब्दों का जाल क्या खूब पिरोया है....|

"मन के कोने से..."

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