
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है
तन्हाई में मेरी, सुबह जीती है ...
वो चैन से सोता है , मुंह उधर कर
रोजाना मेरी आँखे , मेरे अश्क पिती है ||
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ...
ये किस मोड़ पर मेरा जीवन ,
कि मेरा अपना कुछ ना रहा ...|
ना आँखों में सपने रहे , ना सपनों का राजा,
अब मैं भी ना रहूँ ....?
क्या यही है वक्त का तकाजा ?
हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||
चारों और इतना अँधेरा क्यूँ है ?
मेरा गम इतना गहरा क्यूँ है ?
जिसमें बसती थी, रूह मेरी
वों बिन मेरे भी , पूरा क्यूँ है ?
ना जानें भाग्य कि कैसी "नीयती है
सब कुछ पा कर भी , जिन्दगी रिती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||