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Thursday, July 7, 2011

हसीं ख्वाब /बेरंग जिन्दगी



मुझे चाँद में तू नजर नहीं आती आज कल
जब से उस गरीब को उसमें रोटी दिखाई दि है ||

मुझे फुहारों में तू नजर नहीं आती आज कल
जब से उस गरीब कि झोपडी, टूटी दिखाई दि है ||

तेरे इंतज़ार में लम्बी नहीं लगती रातें अब ...
जब से उसकी रातें , रोती दिखाई दि है ||

तेरे ख्वाब मेरी नींदे चुराते नहीं अब ..
जब से जिन्दगी फूटपाथ पे सोती दिखाई दि है ||

तेरा यौवन लुभाता नहीं मुझे अब
जब से उसकी फटी कुर्ती, छोटी दिखाई दि है ||

हसीं ख्वाब बेमानी लगने लगे है ...
जब से वो जिन्दगी खोती दिखाई दि है

मै ख्यालों में जी रहा था अब तक
जिन्दगी अब महसूस होती दिखाई दि है ||

मुझे चाँद में तू नजर नहीं आती आज कल
जब से उस गरीब को उसमें रोटी दिखाई दि है ||

7 comments:

kanu..... said...

Dil ko chune wale shabd hai vijay ji.

Aparajita said...

बहुत ही सचाई से भरी हुई और ज़िन्दगी के यथार्थ का अनुभव कराती हुई ये रचना है ........Really very nice
अगर दुनिया के लोगो को इस चीज़ का एहसास हो जाये के जो कुछ पाने के लिए वो लोग भागते रहते हैं , सच में तो उनका कोई मोल ही नहीं है ....तो कभी किसी इंसान को दुःख और गरीबी नहीं झेलनी पड़ेगी .......I think
पर दिक्कत ये है के जो अमीर हैं वो बस कुछ न कुछ पाने के लिए दौड़ रहे हैं और जो गरीब हैं उन्हें कुछ मिल ही नहीं पाता !

Anonymous said...

मै ख्यालों में जी रहा था अब तक
जिन्दगी अब महसूस होती दिखाई दी है ..
सत्य का सामना ऐसा ही होता है.आभासी और वास्तविक जीवन का अंतर कभी कभी कष्टप्रद होता है..

सुव्यवस्था सूत्रधार मंच-सामाजिक धार्मिक एवं भारतीयता के विचारों का साझा मंच..

Yashwant R. B. Mathur said...

जन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ।

कल 23/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

सागर said...

very very nice...

विभूति" said...

bhaut hi khubsurat....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत भाव ... यथार्थ को कहती अच्छी रचना

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