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Saturday, March 12, 2011
ये मुंबई है मेरे यार ..
थोड़ी सी जानी सी है थोड़ी पहचानी सी ....ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है
यहाँ हर कोई अपना सा है ...ऊँची ऊँची इमारते इक सपना सा है ...
नयी इमारते मन को देती सुकून सी है
और पुरानी खड़ी ....अपने आप में जूनून सी है ॥
लोकल से तेज चलते आदमी है ...फिर भी मंजिल क़दमों से दूर है
दिन भर कि भाग दोड़ में हर एक थक के चूर है ,
फिर भी मुंबईकर होने का अजब सा गुरुर है ||
न जाने इतने लोग मुंबई में आये कहाँ से है ?
भगवान ने इतने अलग-अलग चेहरे बनाये कहाँ से है ??
यहाँ हर एक करता अपनी मनमानी सी है
ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ||
हर एक भाग रहा है इस शहर में अपनी पहचान बनाने को
हर एक छोड़ देना चाहता है अपने पीछे ज़माने को |
मुंबई हमेशा खुली है हर एक का घर बसाने को ||
ये मुंबई दिलवालों के लिये दीवानी सी है ...
ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ||
यहाँ छोटी छोटी "चालों" में ... जिन्दगी बसर करती है...
बड़ी - बड़ी इमारतों में बननें वाली चालें ,पूरे देश पे असर करती है ...
यहाँ हर एक कि शक्ल हीरो सी है , सभी के सपनों कि कीमत जीरो सी है ...
किसी के लिये मुंबई मज़बूरी है , किसी के लिये मुंबई जरुरी है ...
कसमों-वादों कि जिन्दगी.... निभानी सी है
ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ..||
मुंबई कभी सोती नहीं है , कितना भी दर्द मिले कभी रोती नहीं है ...
मुंबई ने थकना नहीं सिखा , किसी भी मोड़ पे रुकना नहीं सिखा ..
इसकी फितरत बुढ़ापे में जवानी सी है, ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ||
सलाम मुंबई ||
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विजय पाटनी
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3 comments:
ek sheher nahi ye sabka sapna hai
kisiki kismat to kisiki kahani hai
haajaro me hammko paya anjana sa
firbhi haar chehra ajj lega yaha apna sa
mumbai hai ye sabki kismat banati hai
dekhte hai abb appko kaha tak lati hai :P
Excellent :) :)
बहुत सुन्दर रचना ..बिलकुल मुंबई की तरह ....
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