दो दीवारों सी हो गयी है जिन्दगी हमारी;
न तुम्हे दिखते है आँसू मेरे ,और न ही मुझे सुनाई देती है धडकन तुम्हारी ||
दो दीवारों सी हो गयी है जिन्दगी हमारी ||
में बाहरी हिस्से की वो दीवार जिसे सहना है वक्त के हर थपेड़े को ,
और बचाना भी है अपने आप को कालिख से;
मुझे सहना है हर एक की घूरती नजरो को भी ,
और इस दीवार के पीछे जो मेरे अपने है ,
मुझे बचाना है उनके वर्तमान को , और सवांरना है उनके भविष्य को भी ||
मेरा इम्तिहान यही खत्म नहीं होता... ,
अभी तो मुझे तुम्हारी प्रतिस्पर्धी निगाहों में भी अपनी जगह बनानी है |
क्युकी तुम हो अन्दर की वो सुन्दर दीवार, जिसकी आँखों में खटकती है मेरी बदसूरती ||
तुम्हे तो मेरे वजूद का अहसास तक नहीं है , क्युकी तुम अपने ही मद में मस्त हो ,
तुमने कभी मेरी नीवं की तरफ नज़र नहीं की, और न ही सराहा कभी मेरी मजबूती को ,
न जाने तुम कब समझोगे ...
तुम्हारे इस स्वरूप को बनाये रखने के लिए मैंने अपने कितने अरमानो को धुल में मिलाया है
और शायद इसी आस लिए हम फ़ना हो जायेंगे ,कि कभी तो बदलेगी नज़रें तुम्हारी ||
दो दीवारों सी हो गयी है जिन्दगी हमारी;
न तुम्हे दिखते है आँसू मेरे ,और न ही मुझे सुनाई देती है आवाज तुम्हारी ||
7 comments:
एक उम्दा प्रस्तुति।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (6/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
एक उम्दा प्रस्तुति।
........खूबसूरत और भावमयी
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
bahut acchhi rachna.....very heart touching :) :) Excellent
very nice poem
बेहतरीन! बहुत दिनों बाद इतनी सुन्दर रचना पढने को मिली है!
बहोत ही सुन्दर रचना .....
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