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Wednesday, November 3, 2010

मैं क्या दीया जलाऊँ....


मैं क्या दीया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है
इस कद्र अँधेरे से मोहब्बत हो गयी ..रौशनी का त्यौहार आँखों को खल रहा है ...
मैं क्या दिया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है ॥
राम का वनवास हो गया खत्म कब का ...
मेरा अब तक अग्निपरीक्षा का दौर चल रहा है
मैं क्या दिया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है ॥
क्या खास बात है इस अमावस की रात में..?अपनी तो हर रात 'स्याह' है ॥
यहाँ तो हर दिन बड़ी मुश्किल से संभल रहा है
मैं क्या दीया जलाऊँ, मेरा तो दिल जल रहा है॥
मुठ्ठी भर खुशियाँ और दामन खाली हजार
एक दीपक है रोशन करने को और अँधेरे की भरमार
कितनी भी रौशनी दे वो , दीया तल भी अँधेरा मिल रहा है ॥
मैं क्या दीया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है॥
महंगाई की भरमार मिलावट का संसार
कैसे में दीपक जलाऊँ ...न तेल न तेल की धार ..
इस माहोल में तो अब दम निकल रहा है
मैं क्या दीया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है
*** HAPPY DIWALI ****

6 comments:

Deepak chaubey said...

सुन्दर रचना। बधाई।आपको व आपके परिवार को भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

संजय भास्‍कर said...

आपको और आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ....

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!

vandana gupta said...

बेहद दर्द भरा है।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

Very good ....poem!!

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