
ये कविता कहानी है मलाड कि निधि गुप्ता कि जिन्होंने कुछ दिन पहले हार के अपने आप को इस ज़माने के गम से जुदा कर लिया ,लेकिन उसका यूँ जाना इस दिल को बहुत अखरा है... यूँ ही हार के अपने आप को खत्म कर लेना किसी भी परेशानी का हल नहीं है , आप को जीना सीखना होगा , आप को दर्द को अपनी ताकत बनानी होगी ...अब इस चिंगारी को हर एक को अपने अन्दर जलानी होगी ||
क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ,?
क्यों वो सूखे फूल सी मुरझा रही है ...??
भगवान में आस्था रखने वाली वो ...
अपने बनाये इंसान से ,अब तक क्यों धोखा खा रही है ??
क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ...?
न जानें क्यों वों सहमी सहमी रहती है ? न जानें क्यों वों सब कुछ सहती है ?
क्यों हर कोई उसका साथ छोड़ देता है ? क्यों हर कोई उससे मुहं मोड़ लेता है ??
क्यों स्त्री आज भी अग्नि परीक्षा कि रस्म निभाए जा रही है ?
क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ,??
सीता कि अग्नि परीक्षा एक प्रथा बन चुकी है, आज हर स्त्री कि यही व्यथा बन चुकी है
चुप रह के अन्याय को सह लो ,और सर उठा के चलना है तो घुट घुट के रह लो ||
और गर घुटन हद से गुजर जाए तो कर लो फ़ना जिन्दगी के सफ़र को
पर क्यों वों ऐसा कर , लाखो के जीने कि लौं को बुझा रही है ?
क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ??
अब समय इस आग में जलने का नहीं है ,इस आग को अपने अन्दर जलाने का है
समय कमजोर बन के सब कुछ सहने का नहीं है ,अन्याय का पुरजोर विरोध करने का है
अबला को अब बला बनना होगा , सीता को दुर्गा का रूप धरना होगा
हर एक स्त्री को खुद के लिये कदम से कदम मिला के चलना होगा ||
'निधि' कि चिता कि चिंगारी को हवा दीजिये , इस चिंगारी को शोला बना लीजिये
दो टूक जवाब दीजिये अन्याय को दुनिए के , क्युकी ये दुनिए आप को भरमा रही है ||
"विजय" साथ होगी हर कदम पे , गर आप अपना कदम खुद उठा रही है ||
खुद में हिम्मत है तेरे, तुझ से जमाना है फिर क्यों तू ज़माने से घबरा रही है
क्यों तू सूखे फूल सी मुरझा रही है ...??