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Sunday, September 19, 2010

रूह से रूह तलक....


अब कुछ ऐसा लिखे जो सब की रूह तलक पहुचें
राह जो पकड़ लें अब... वों मंजिल तलक पहुचें
कांटो पे चलते रहे ....गम नहीं कोई...
पर अब तो पैर के छाले मरहम तलक पहुचें
अब कुछ ऐसा लिखे जो सब की रूह तलक पहुचें
एक अदद ख़ुशी की तलाश में भटकता फिरा में दरबदर ...
अब तो मेरी आवाज़ उस के दर तलक पहुचें
जमीं पे रह के ख्वाब सजाये फलक के
उम्मीद के आवाज़ मेरी दूर तलक पहुचें
में तेरे होने के भ्रम में जिये जा रहा हूँ
कुछ ऐसा कर की अँधेरे में भी तेरी परछाही मुझ तलक पहुचें !!
दर्द में रिसती जिन्दगी पिघलने को बेताब
आंधियां उड़ा ले गयी बचे कुचे से ख्वाब
अब तो सुकून की आबो हवा इस तलक
पहुचें !!
कई सों बरस जीने की तमन्ना थी मेरी
लेकिन पचास भी बड़ी मुश्किल तलक पहुचें !!
है जिन्दगी में परेशानियाँ बहुत मुझे पता है ..
पर हर वो शख्स ख़ुशी से जिये मेरे शब्द जिस तलक
पहुचें !!
अब कुछ ऐसा लिखे जो सब की रूह तलक पहुचें......

3 comments:

Anonymous said...

Bahut aacha likha gaya hai.... kisi ke bhi dil ke kareeb hai

Ravish Tiwari (रविश तिवारी ) said...

Bahut khub vijay ji...
एक अदद ख़ुशी की तलाश में भटकता फिरा में दरबदर ...
अब तो मेरी आवाज़ उस के दर तलक पहुचें

बहुत सुन्दर रचना|


Kabhi mere blog par jaroor aayen
http://alfaazspecial.blogspot.com/

Aparajita said...

very nice again as alwayzzz :) :)

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