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Saturday, September 4, 2010
शब्द गुम है
शब्दों से आज कल कुछ अनबन सी हो गयी है ...
मन में न जाने कितनी उलझन सी हो गयी है... ?
जो 'आह' निकलती थी दिल से शब्दों के रूप में
वो कहीं खो गयी है जिन्दगी की दोड़ - धुप में
शब्दों को तलाशा मैंने ...हरियाली में सूखे में ....
सुबह की पहली किरण में ....ढलती शाम की लाली में ...
खुशहाली में ....बदहाली में ...रहीसी में.... कंगाली में ... ॥
पतझड़ के पत्तों में ....पीपल की छाँव में ...
शहर की भागती जिन्दगी में और रुके थके गाँव में ॥
लेकिन शब्द मौन है और न जाने इसकी वजह कोंन है ?
मुझे 'वाह' नहीं चहिये 'आह' चाहिए
आँखों से बहते नीर को फिर से दवात में भर लो
हे शब्दों मुझ में फिर से अपना घर कर लो ...
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विजय पाटनी
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4 comments:
vijay ji bahut hi acchi kavita likhi hai aapne, wakai dil ko chu gai aapki kavita...
http://santoshkumar.tk/
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने और चित्र भी अच्छा है .....
......
(आजकल तो मौत भी झूट बोलती है ....)
http://oshotheone.blogspot.com
so true...same thing happened to me...not finding words...so busy in life..
nice..
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