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Tuesday, April 20, 2010

बारिश


सूरज की बाद्लों से आँख मिचोली चल रही है ..
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!

सब खुश है चारो और ...बस एक हमे छोड़ कर
हमे तो इस मोसम में बस आप की कमी खल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!!

आप आयेंगे नही आप को ख्याल ही कहा है हमारी खुशी का ॥
आप की और भी कुछ बादल कर दे हवा से हमारी बात चल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!!

बारिश की बूंन्दे कुछ इस तरह से गिरी है तन पे ..
जैसे आप ने छुहा हो हमे प्यार से .... आ जाओ अब तो ये रात भी ढल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!!

इसे आप शिकायत मत समझना ..हम नाराज़ नही है आप से ..
बस ये तो हमारी तमन्नाये है जो मचल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही hai !!!

11 comments:

Dev said...

प्रशंसनीय प्रस्तुति है

arvind said...

bahut achhi prastuti.chtra bhee utana hi sundar,...vah bahut badhiya.

Pushpendra Singh "Pushp" said...

एकता जी
बहुत ही सुन्दर रचना -बधाई

EKTA said...

@ PSINGH
ye rachna vijay ji ki hai,meri nahi..

nilesh mathur said...

कमाल का लिखा है

संजय भास्‍कर said...

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

Anonymous said...

bahut khub rachna hai..
kal yahan nahan mein bhi baarish huyi,,..
mausam ki pehli baaris..
bahut hi umdaaah rachna...
yun hi likhte rahein..
regards
http://i555.blogspot.com/

Dev said...

behtreen rachna ......

abhi said...

bahut achha likha hai vijay ji :)

Rohit Singh said...

भीगें तो हम भी. पर लगता है मन प्यासा रह गया है..शब्दों का बारिश ने कुछ भूली बिसरी यादों को फिर से ताजा कर दिया..पर क्यों....मन याद करे....मन क्यों घबराता है जब बारिश होता है..मन को थामना आसान नहीं.....काफी बेहतर प्रस्तुति...

anil gupta said...

aati sunder rachana hai yah aap ki.

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