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Saturday, April 17, 2010

दादी आ रही है ......



सुधा collage जाने को तैयार हो ही रही थी ... की तभी फ़ोन की रिंग बजी
फ़ोन सुधा की कजिन का था ...उस ने कहा दादी आज वहा आ रही है तुम स्टेशन चल जाना लेने को ॥
ये सुनते ही सुधा की आँखों के सामने फिर से वो पुराने कड़वी यादे घुमने लगी .......
भारी मन से collage को निकली रस्ते में उस की सहेली उमा मिल गई
उमा : क्या हुआ सुधा बहुत परेशान लग रही हो ?
सुधा : हा यार दादी आ रही है आज
उमा : ओह राम जी दादी ( उमा को भी दादी की आदतों की जान कारी थी )
(सुधा की दादी वैसे तो बहुत धर्मात्मा है दिन भर पूजा पाठ में लगी रहती है....दान धरम में आगे रहती है
अपना काम भी ख़ुद ही करती है वो अपने कपड़े धोने से लेकर खाना बनाना तक !!उम्र के ६५ बसंत पार हो चुके है पर आज भी बच्चो जैसी फुर्ती है उन में !!)
बस दादी चुप नही रह सकती वो जरूर सब पर अपने राय थोपेगी ... सब को अपने हिसाब से चलने को बोलेगी
हर बात में हर इन्सान में कमी निकलना उन की आदत में है )
सुधा : उमा हाँ यार दादी आज आ रही है ,अब फिर से रोज की चिक चिक चालु हो जायेगी माँ और दादी के बीच !!

फिर से पुरे मोहल्ले को पता चलेगा की इस घर में जानवर ही रहते है दिन भर शोर सुनाई देगा सब को हमारे घर से
!!

uma : दादी को रहने को खाने पिने को कोई कमी नही है भगवन की दया से बड़ा परिवार है सब बच्चो के
बड़े बड़े मकान है ...दादी चाहे तो सब को आर्डर दे के अपना काम करा सकती है , लेकिन पता नही क्यो वो ख़ुद काम करना चाहती है अबभी?? पता नही उन को अब भी क्यो मोह माया से लगाव है इतना ?? क्यो वो धरम धयान में मन नही लगाती पुरा !!!??

क्यो हर जगह अपने बहु बेटो का मजाक बनाने में लगी रहती है .??.. जब की सब बेटे बहु इतना धयान रखते है उन का !!

सुधा : चुप है उस को समझ नही आ रहा क्या जवाब दे वो इन सवालो का ??
वो ख़ुद ये जाना चाहती है की क्यो बुजुर्ग लोग उम्र के इस पड़ाव पे आकर बच्चो से दूर हो जाते है ?? क्यो वो अपना सव्भाव नही बदलते ? वो क्यो चाहते है की लोग उन के हिसाब से चले जो की मुमकिन नही है नई पीडी के लिए॥

ये कहानी है उन सब की जिन घरो में बड़े बुजुर्ग आज भी अपना रौब चलाते है बच्चो पे .... अपने बहु बेटो में कमी निकलना ज़माने भर में उन की बुराई करना आदत बन गई है , जिन को ऐसा लगता है की अगर हम ने अपना रौब छोड़ा तो हमारा बुढापा ख़राब हो जायेगा ?

में यह नही कहता की बुजुर्ग है तो उन को कोने में पटक दो एक ...और भूल जाओ नही !!! लेकिन उन को ये समझना जरूरी है की अब समय आ गया है की हम किसी को अपने हिसाब से न चलाये बल्कि कुछ परिवर्तन
अपने में लाने की कोशिश करे ....सीधा खड़ा हुआ पेड़ जड़ से उखड जाता है लेकिन अगर वो फल के बोज से झुका हो तो नही गिरता !! कभी कभी झुकने में भी मान बढता है .....

अपने विचार देते रहे .....

5 comments:

Anonymous said...

bahut khub kahani...
achhi rachna...
nishchit hi humein apne bujurgon ka aadar karna chahiye...
achhi kahani ke liye badhai...
regards.
shekhar
http://i555.blogspot.com/

Rohit Singh said...

यही तो मुश्किल है.....बड़े बदलते नहीं.....जिदगी में सब कुछ होते हुए भी अधिकार नहीं छोड़ना चाहते ...तो कहीं जो बदलने की कोशिश करते हैं उन्हें नई पीढ़ी बदलने नहीं देती....ताने दे दे कर जीना मुहाल कर देती है

ये दुधारी तलवार है....दोनो पक्षों को सोचना होगा..

EKTA said...

har ghar ki kahaani hai ye.
bujurgo ko chaiye ki waqt k sath khud ko badle..aadar k badle sneh de..generation gap ko cover karna bahut jaruri hai..

abhi said...

बात तो सही है...अधिकांश घरों में ऐसा देखने को मिल जाता है, वैसे एक बात कहना चाहूँगा की बड़े बुजुर्ग जैसे भी हो..चाहे गलत भी..लेकीन आदरणीय होते हैं..वैसे अच्छा लिखा आपने

Gaurav Baranwal said...

Shahi kaha aap ne -"Shidha khada hua ped jad se ukhad jata hai par vo ped phal se lada hai to jhuk jata hai par girata nahi, kabhi kabhi jhukne se bhi man badta hai." veri good line.........

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