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Sunday, October 11, 2009

मन, ये मन हमेशा ही पैरो में पंख लगाये इधर से उधर उड़ता रहता है / न जाने कहाँ जाना चाहता है, क्या करना चाहता है / कठपुतली बना हमे हमेशा नाचता रहता है ये मन / कभी किसी को पल में अपना बना ले तो किसी से मुह मोड़ते भी देर न लगे / कभी चाँद तारे छूने का मन होता तो कभी आसमा में उड़ने का, फिर अचानक वास्तविकता से सामना होता और ये धडाम ज़मीं पर आ गिरता /

कभी मतवाला उन्मुक्त अल्हड जवानी के मद में डूबा हुआ, कभी अचानक से जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा हुआ / रोज़ एक नया अहसास एक नया विश्वास , विश्वास की मै भी कुछ कर पाऊ या फिर सोचते सोचते ही सारा वक्त मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल जायेगा और जिंदगी उस मोड़ पर ला खडा कर देगी जहाँ इस मन का अपना कोई वजूद ही नहीं रह जायेगा /

जिंदगी की इस उतर चढाव में वक्त की तेज़ आंधी के थपेडे झेलते हुए न जाने कितनी बार इस मन को मरना पड़ता है / कई बार दुसरो का मन रखने के लिए तो कई बार अनजाने में / और कभी जब मन की मुराद पूरी हो जाये तो उस समय ये मन एक सुन्दर मोर बन बारिश के स्वागत में नाच उठता है , जिससे चारो ओर खुशियों की हरियाली छा जाती है /

कई बार धुंधली सी मंजिल की ओर भागता है / कई बार लक्ष्हीन हो अनजाने से रस्ते पर भटकता रहता है / मन की इसी द्वन्दिता को झेलते हुए कवी के मुख से अनायास ही निकल पड़ता है,

'मन रे तू कहे न धीर धरे'

3 comments:

Unknown said...

आत्म मंथन पर विवश करने वाली यह पंक्तियाँ , मानव मन की प्रत्येक अवस्था का उत्कृष्ट वर्णन हैं !

कभी चाँद तारे छूने का मन होता तो कभी आसमा में उड़ने का, फिर अचानक वास्तविकता से सामना होता और ये धडाम ज़मीं पर आ गिरता !!

पंक्तियाँ मानव जीवन के वास्तविक धरातल का परिचय हैं !!! श्रेष्ठ लेखन के लिए शुभकामनाएं !!!!!!!! शुभम ##

विजय पाटनी said...

man kuch bhi chah leta hai is pe jor nahi chalta hai kisi ka ye apni marzi ka malik hai

man pe vijay prapat karna hi sahi maayene mai jeena hai :)

Unknown said...

सच तो ये है कि, यही मानव जीवन की वास्तविकता है और इससे भागना, इसको छुपाना या विजय प्राप्त करना असम्भव तो नही पर बहुत मुश्किल होता है, जिस पर (मन पर) विजय कुछ विरले ही पाते है.!

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