
आज सुबह अख़बार पढ़ा तो पता चला की आज गरीबों का दिन है
में सोचा गरीबों का तो हर दिन मुश्किल से कटता है
उन्हें कहाँ कुछ फर्क पड़ता है.....की अख़बार में क्या छपता है ॥
और अख़बार पड़ने वालों को भी फूटपाथ पे रहने वालों की कहाँ पड़ी है ?
उनकी नज़रें तो फूटबाल के पन्ने पे ही गढ़ी है ॥
और गरीबों की इस हालत के जिम्मेदार वो सफ़ेद पोश
अपने कुर्ते में आई सलवटों को सही करने में लगे है
एयर कंडीशन कारों में बैठ बिसलेरी पानी पिने वालों को
कहाँ फर्क पड़ता है की देश में भूख से रोजाना कितने मर रहें हैं ?
और गरीब को कहाँ अपना जन्मदिन ही याद रहता है ?
जो वों अपने जख्मों पे नमक छिड़कते इस दिन को भी याद करेगा ?
गरीब कहाँ अपनी गरीबी को याद करना चाहता है
ये तो विदेशी संस्कारो वाले भारतीय है
जिन्हें ऐसे दिन बनाने में ही मजा आता है ॥
इतनी सी गुजारिश है मेरी उन ज्यादा किताबी ज्ञान रखने वाले लोगो से
की गरीबों के लिए कोई दिन मत बनाओ
बनाना ही है कुछ ....तो गरीब के लिए अपने दिलों में जगह बनाओ ॥
और अपनी तिजोरियां भर रहे उन सेठ लोगो से निवेदन है
की भले आप अपनी पेटियां भरो
लेकिन कृपा कर के.....
हर दिन एक गरीब की दो वक़्त पेट की भूख को भी शांत करो ॥