कल अपने पापा से मेरी बात हो रही थी...अचानक ही कहने लगे बेटी तुम्हे देखे कितने दिन हो गये...गर्मी की छुट्टियाँ आते ही मायेके जाने की तयारी शुरू हो जाती है लेकिन इस बार शायद जाना ना हो पाए...पापा हमेशा कहते है बेटियों को जन्म दो, इतने प्यार से उन्हें पालो पोसो बड़ा करो और फिर एक दिन उन्हें देखने के लिए भी तरस जाओ...चिडियों सी चहचहाती पूरा घर गुलजार करती ये बेटियाँ एक दिन सब सूना कर परदेश चली जाती है...ये उनकी एक बड़ी शिकायत है इस समाज से...उनकी इन्ही सारी बातो को याद करते करते कल कुछ पंक्तियाँ लिख गयी....
पापा आज आपकी बहुत याद आ रही है...
वो पिछला गुजरा जमाना, वो मेरा बचपन सुहाना...
हमारा बारिश में भीगना, फिर माँ की डांट से बचाने के लिए आपका दुकान में छुपा लेना...
साथ बिठाकर खाना खिलाना, मेरे सारे गणित करवाना...
मेरे रिजल्ट आने पर खुद से ज्यादा खुश आपको देखा है मैंने...
दिवाली के पठाखे लाना, छट के घाट घुमाना...
होली में खुद ठंडाई बनाना और दशहरे में स्कूटर से पूरा शहर घुमाना...
जिंदगी जीना तो आपसे ही सीखा है मैंने...
तराने गुनगुना कर माँ को छेड़ना, फिर माँ का मुस्का कर पलट जवाब देना...
इस प्यारा भरे रिश्ते की छाँव में हम कब बड़े हो गये पता भी नहीं चला...
मुझे याद है जब मैंने पहली बार खाना बनाया था...
और आपने उस तेज़ नमक की दाल को भी कितने चाव से खाया था...
फेरो के समय घूँघट की आड़ से धीरे से देखा था मैंने आपको...
नम आँखे और हलकी मुस्कान लिए चुप-चाप बैठे थे आप...
अपनी रानी बिटिया किसी और को सौपते हुए आपका हाथ भी कांपा था...
याद है मुझे कितना रोये थे आप कलेजे से लगा अपनी बेटी को...
जीवन की सफलता असफलता का ज्यादा ज्ञान नहीं मुझे...
लेकिन आपकी बेटी बनकर जन्म लेना ही मेरा जीवन की सार्थकता है...