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Wednesday, July 20, 2011

बारिश के बाद कि सुबह..


बारिश के बाद कि सुबह ,थोड़ी भीगी सी , थोड़ी अलसाई सी
हरें पेड़ों कि पत्तियां थोड़ी खिली सी, थोड़ी मुरझाई सी ...
थोड़ी नमी सी दीवारों में , थोड़ी बूँदें किनारों में
थोड़ी सी मस्ती इशारों में, उड़ते परिंदे नजारों में
सूरज कि बाहें खुली खुली , हर एक कली इठलाई सी
बारिश के बाद कि सुबह ,थोड़ी भीगी सी , थोड़ी अलसाई सी ||

जारी है , बादलों का सूरज के साथ,अठखेलियाँ करना
गीले आँगन में हमारा , संभल संभल के चलना ...
टूटी छतों कि मरम्मत का दौर , कहीं से बहते पानी का शोर ||
अभी तक वो छोटी गिलहरी , पानी से कुछ सकुचाई सी
बारिश के बाद कि सुबह ,थोड़ी भीगी सी , थोड़ी अलसाई सी ||

बारिश के बाद कि सुबह , ना जाने क्यूँ आसमान , कुछ ज्यादा ही नीला सा है
पत्तों, पेड़ों , दीवारों , धरती के साथ, मन भी तो थोडा गीला सा है ||
सीली- सीली हवा के झोंके, ख्वाबों में भी कुछ सीलन सी ले आयें है..
गीली हरी दूब के अहसास को , हम अपना दिल दे आयें है...
देखो फिर एक बार , प्रक्रति ने हमसे, दोस्ती निभाई सी ...
बारिश के बाद कि सुबह ,थोड़ी भीगी सी , थोड़ी अलसाई सी ||

Thursday, July 14, 2011

आ उड़ चले अब गगन में...


आ उड़ चले अब गगन में , धरती पे बहुत शौर है
हर एक शाम रंगी खून से , सिसकती हर एक भौर हैं
आ उड़ चले अब गगन में , धरती पे बहुत शौर है ||

जो सफेदी कभी देती थी शांति का सन्देश
उस को लपेटे खड़ा , कोई कातिल है कोई चोर है
आ उड़ चले अब गगन में , धरती पे बहुत शौर है ||

अँधेरा कर गयी पूरी जिन्दगी में, एक सुहानी शाम
गायब हुई मुस्कराहट लबों से , ना मिलें आसुओं को आराम
उतरा नहीं इक निवाला हलक से , हाथों में अधूरी रोटी कि कोर है
आ उड़ चले अब गगन में , धरती पे बहुत शौर है ||

इंसान ही इंसानियत का कर रहें है खून ...
हरी भरी धरती को लाल करने का कैसा है ये जूनून ?
सहमा - सहमा हर एक शख्स, किस काम का ये नया दौर है ?
आ उड़ चले अब गगन में , धरती पे बहुत शौर है ||
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कुछ दिन करेंगे हो हल्ला , फिर सब चुप हो जायेंगें
सचिन का होगा सौवां शतक , हम धमाकों का दर्द भूल जायेंगें
दिल्ली कहेगा मुंबई कि गलती , मुंबई कहेगा दिल्ली कि
इस देश में ऐसा होता रहेगा , ये लड़ाई है चूहे बिल्ली कि
ना जाने लाल किले के कानों को कोन सा धमाका हिलाएगा
कब तक इस प्यासी धरती को , आम आदमी का लहू दिया जाएगा ?
मुंबई आतंकवादी हमलें में मारे गए सभी आम आदमी को इस आम आदमी कि और से अश्रुपूर्ण श्रदांजलि ||

Thursday, July 7, 2011

हसीं ख्वाब /बेरंग जिन्दगी



मुझे चाँद में तू नजर नहीं आती आज कल
जब से उस गरीब को उसमें रोटी दिखाई दि है ||

मुझे फुहारों में तू नजर नहीं आती आज कल
जब से उस गरीब कि झोपडी, टूटी दिखाई दि है ||

तेरे इंतज़ार में लम्बी नहीं लगती रातें अब ...
जब से उसकी रातें , रोती दिखाई दि है ||

तेरे ख्वाब मेरी नींदे चुराते नहीं अब ..
जब से जिन्दगी फूटपाथ पे सोती दिखाई दि है ||

तेरा यौवन लुभाता नहीं मुझे अब
जब से उसकी फटी कुर्ती, छोटी दिखाई दि है ||

हसीं ख्वाब बेमानी लगने लगे है ...
जब से वो जिन्दगी खोती दिखाई दि है

मै ख्यालों में जी रहा था अब तक
जिन्दगी अब महसूस होती दिखाई दि है ||

मुझे चाँद में तू नजर नहीं आती आज कल
जब से उस गरीब को उसमें रोटी दिखाई दि है ||
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