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Thursday, December 31, 2009

मन...

मन एक पंछी के जैसे हर पल उड़ना चाहे,
उम्मीदों के पंख लगा कर गगन को छूना चाहे,
कल क्या होगा कोई न जाने,
ये मतवाला तो बस आज को जीना चाहे

ये मन भी बांवरा है कैसे-कैसे ख्वाब दिखाए,
हकीक़त में जो दूर है,उसके करीब ले जाये,
काश इसकी सब आशा पूरी हो
जो ये चाहे बस इसे वो ही मिल जाये

पर
सच्चाई इस कुदरत की कुछ और ही दिखती है,
मन की उदारी भी इक दिन आ कर रूकती है
टूटते हैं जब अरमान दिल के तो
सब खुशियाँ हाथ से रेट की तरह फिसलती हैं

वक़्त के साथ फिर हर जख्म भरता जाता है
सपना कोई नया तब किसी कोने में बुनता जाता है
बार-२ ठोकर खा कर भी ये दिल
वो ही गलती करने को तैयार होता जाता है

2 comments:

जोगी said...

"बार-२ ठोकर खा कर भी ये दिल
वो ही गलती करने को तैयार होता जाता है"

Great,Perfect one !!!
Happy New Year !!!

रामकृष्ण गौतम said...

Mind BLowing... 10 on Ten..


Warm Regards

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