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Thursday, October 29, 2009

कोई हम से पूछे

किसी अजनबी को दिल में बसाना क्या है
कोई हम से पूछे
उसकी यादों में ख़ुद को भुलाना क्या है
कोई हम से पूछे
दिल फ़िर टूट के बिखर गया तो क्या
उन टुकडो को चुन कर नए अरमान बनाना क्या है
कोई हम से पूछे

किसी के दूर होकर भी पास होना क्या है
कोई हम से पूछे
न उम्मीद होकर भी इंतज़ार करना क्या है
कोई हम से पूछे
दिल की बाज़ी हार गए तो क्या
अपना सब कुछ खोकर भी मुस्कुराना क्या है
कोई हम से पूछे

होठो को सिल कर सब कुछ सहना क्या है
कोई हम से पूछे
अपने अश्कों को पी कर दुसरो को हँसाना क्या है
कोई हम से पूछे
खुदा से गिला करे भी तो क्या
उसकी हर रजा में सर को झुकाना क्या है
कोई हम से पूछे

7 comments:

neelima garg said...

INTERESTING POEM....

विजय पाटनी said...

wah wah kya likha hai
koi hum se puche :P :D :)

जोगी said...

waah ji waah...
aapki poem kitni khoobsoorat hai
yeh sab aapke comments se poochhe... :)

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह!सुन्दर प्रस्तुति....बहुत ही अच्छी लगी ये रचना.....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

कोई हम से पूछे
होठो को सिल कर सब कुछ सहना क्या है
कोई हम से पूछे
अपने अश्कों को पी कर दुसरो को हँसाना क्या है..

सही है. ये तो अपने अपनों की बात है. अच्छा लिखा है.

कविता रावत said...

Achhi rachna lagi. Likhate rahiye.
Subhkamna

amar said...

i thought ... mother teresa is no more
when she reincarnated ???
:-)

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